हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी बर्रे सगीर के मशहूर शिया अलिमे दीन ओर मज़हबी मुसन्निफ़ थे, आप सतरह सितम्बर उन्नीस सो अडतीस ईस्वी करारी ज़िला इलाहबाद में सूबा यूपी हिंदुस्तान में पैदा हुए,अल्लामा सय्यद ज़ीशान हैदर जवादी के वालिद मोलाना सय्यद मोहम्मद जवाद इल्मो फज्ल में नुमाया शख्सियत के मालिक थे ओर क़स्बा जलाली ज़िला अलीगढ़ में एक मुद्दत तक पेश नमाज़ थे|
अल्लामा ने इब्तेदाई तालीम करारी के मदरसाए अमजदिया मे हासिल की ओर फिर सन उन्नीस सो उननचास में में मदरसाए नाज़मिया लखनऊ में दाखिल हुए जहाँ आप ने जय्यद असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया |
मदरसाए नाज़मिया की तालीम के इखतेताम के बाद दर्जाए इजतेहाद के हुसूल के लिये सन उन्नीस सो पचपन ईस्वी में आपने नजफ़े अशरफ़ (इराक़) का रूख किया ओर वहाँ तक़रीबन दस साल तहसीले इल्म में सर्फ किए, नजफ़े अशरफ़ के असातेज़ा में : शहीदे खामिस आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़ेरूस्सद्र , आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम खूई , आयतुल्लाह सय्यद मोहसिन तबातबाई हकीम , शहीदे मेहराब आयतुल्लाह सय्यद असदुल्लाह मदनी तब्रेज़ी , आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद तक़ी आले राज़ी , आयतुल्लाह हुसैन रास्ती काशानी नीज़ आयतुल्लाह मोहम्मद अली मुदर्रिस अफ़गानी के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं
अल्लामा पर ख़ास तोर से आयतुल्लाह मोहम्मद बाक़ेरुस्सद्र बहुत मेहरबान थे |
सन उन्नीस सो पैंसठ में आप नजफ़े अशरफ़ (इराक़) से हिंदुस्तान वापस आये ओर तक़रीबन सन उन्नीस सो अठत्तर ईस्वी तक इलाहबाद की मस्जिद क़ाज़ी साहब में पेश नमाज़ी के साथ साथ तसनीफ़ो तालीफ़ का काम अंजाम देते रहे|
आप का शुमार कसीरूत तसानीफ़ ओलमा में होता है , आप की सुरअते क़लम को ख़ुद आपके उस्ताद अयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़ेरूस्सद्र
हैरतो इस्तेजाब की निगाहों से देखा करते थे, तहरीरी काम आपने इल्मे दीन हासिल करने के दोरान ही शुरू कर दिया था, ज़ाहेरन सबसे पहले आप ने सुलैम बिन क़ैस ( असरारे आले मोहम्मद) का उर्दू में तर्जुमा किया , नजफ़े अशरफ में ही अबुतालिब मोमिने क़ुरेश, अल्लामा अब्दुल्लाह खुनेज़ी की तसनीफ़ का तर्जुमा पंद्रह दिन में मुकम्मल किया|
अल्लामा जवादी की कुतुब की फेहरिस्त तवील है जिनमें से : तर्जुमा व तफ़सीरे क़ुराने मजीद (अनवारुल क़ुरान) तालीफ़ों तर्जुमा अहदीसे क़ुदसिया, तर्जुमा व शरहे सहीफ़ा ए सज्जदिया , तर्जुमा व शरहे नहजुल बलागा , तर्जुमा हिलाली , तर्जुमा किताब इक़्देसादी व इस्लामी बैंक आयतुल्लाह मोहम्मद बाक़ेरुस्सद्र | तसानीफ़ : नुकुशे इस्मत , मुतालए क़ुरान , उसूलो फ़ुरु , ज़िक्रो फिक्र , उसूले इलमुल हदीस , इल्मे रिजाल फ़ुरु ए दीन खानदान ओर इंसान, कर्बला , नमाज़ (क़ुरानो सुन्नत की रोशनी) इस्लाम का माल्याती निज़ाम, इजतेहादो तक़लीद, पाकीज़ा मुशाएरा , अल्लामा बहुत अच्छे शायर भी थे जिसकी तसदीक़ मोसूफ़ के मजमूआत : सलामे कलीम , कलामे कलीम , पयामे कलीम ब्याज़े कलीम , वगैरा करते हैं |
शुरू में आप की किताबें इलाहबाद में मज़हबी दुनिया नामी इदारे से शाए हुआ करती थीं, बाद में इदारा ए तंजीमुल मकातिब लखनऊ से शाया होने लगीं, सन उन्नीस सो पैंसठ ईस्वी में आप नजफ़े अशरफ़ से वापस आए ओर तक़रीबन उन्नीस सो अठत्तर ईस्वी तक इलाहबाद की मस्जिद क़ाज़ी साहब में पेश नमाज़ी के साथ साथ बहुत सी दीनी खिदमत अंजाम दीं |
इलाहबाद में मज़हबी मुशाएरे की तशकील में आप ने कारे ख़ैर ओर तंजीमे खुमसो ज़कात नामी दो इदारे भी क़ायम किए जाने के ज़रिये एहले सर्वत से रुक़ूमे शरईय्या हासिल करके नादार लोगों की हाजतें पूरी की जाती थीं |
शहरे इलाहबाद में मदरसाए इमामिया अंवारुल उलूम आप की मुस्तक़िल यादगार है, इस मदरसे की तासीस सन उन्नीस सो पिचासी ईस्वी में अमल में आई, जिसकी इदारत के फ़राइज़ आप के बड़े फ़र्ज़न्द मोलाना सय्यद जवाद जवाद हैदर जवादी अंजाम दे रहे हैं , अब तक इस मदरसे से कसीर तादाद में तुल्लाबे उलूमे दीनया ज़ेवरे इल्म से अरास्ता होकर आला तालीम के हुसूल के लिए क़ुम ओर नजफ़ के होज़ाते इलमिया में पहुँच चुके हैं ओर बहुत से तुल्लाब हिंदुस्तान के मुखतलिफ़ शहरों के अलावा बैरुनी ममालिक में तबलीगे दीन में मशगूल हैं
जब भी आप इलाहबाद आते थे तो हमेशा नमाज़े ज़ोहरैन अपने मदरसे अनवारुल उलूम में ही पढ़ते थे ओर बादे नमाज़ तुल्लाब को क़ुरानों हदीस से मुताअल्लिक़ सवालात करते थे ओर अक्सर ओक़ात मुखतलिफ़ मोज़ूआत पर मक़ालात लिखवाकर उन्हें इनआमात से नवाज़ते थे इस तरह तुल्लाब में मज़ीद इल्मे दीन का शोक़ पैदा होता था |
बानिए तंज़ीमुल मकातिब खातीबे आज़म मोलाना सय्यद ग़ुलाम असकरी की मोहब्बत आप को खींच कर ईदराए तंज़ीमुल मकातिब मे ले आई जहां आप पहले कमेटी के रुक्न रहे, फिर नाइबे सद्र ओर आख़िर मे सदारत के लिये मुंतखब हुए, इदारे के पंद्रह रोज़ अखबार में सवालात के जवाबात का सफ़हा आप से मखसूस था |
सन उन्नीस सो अठत्तर ईस्वी में मोमिनीन अबु ज़हबी की दावत पर तबलीगे दीन की ख़ातिर आप मुस्तक़िल तोर पर सुकुनत पज़ीर हो गये जहाँ आप मस्जिदे रसूले आज़म के पेश नमाज़ ओर वहीं रहकर आपने अहम किताबों की तसनीफ़ का काम अंजाम दिया, इसी दोरान आप ने योरोप अमेरिका , अफ़्रीका केनेडा , ओर दुनिया के दीगर ममालिक में तबलीगे दीन की ख़ातिर सफ़र किए ओर सन उन्नीस सो अठासी ईस्वी तक
आप का क़याम अबु ज़हबी मे रहा, ओर दस मोहर्रम (असरे आशूर) सन चोदह इक्कीस हिजरी मुताबिक़ पंद्रह अप्रैल दो हज़ार ईस्वी बरोज़े शमबा हस्बे मामूल आप ने अबु ज़हबी में आमाल कराये ,मजलिसे शहादत पढ़ी
नमाज़े ज़ोहरैन पढ़ाई जुलूसे अज़ा की क़यादत की फ़ाक़ा शिकनी के बाद आप इस्तराहत के लिए अपनी बेटी के घर तशरीफ़ ले गये ओर वहीं अचानक तबीयत ख़राब होने से अपने मालिके हक़ीक़ी से जा मिले|
आप को अबु ज़हबी में तदफ़ीन के बाद इलाहबाद लाया गया ओर मजीदिया इस्लामी इंटर कालेज के मैदान में मोलाना सय्यद अली आबिद रिज़वी ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई ओर हिंदुस्तानी एतेबार से बारह मोहर्रम चोदह सो इक्कीस हिजरी मुताबिक़ अठारह अप्रैल सन दो हज़ार ईस्वी को मोहल्ला दरयाबाद के क़बरुस्तान में मादरे गिरामी के पहलू में सुपुर्दे ख़ाक किया गया |
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-२ पेज-६७ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।